दर्द के सफ़्फ़ाक हाथों से चुरा कर एक दिन फिर उसी शादाब वादी में चलें दूर तक फैले हुए चाय के बाग़ात में हाथ ले कर हाथ में देर तक चलते रहें और कोई रोकने वाला न हो और लीची के दरख़्तों की घनेरी छाँव में ज़ाफ़रानी ओढ़नी पर लेट कर देर तक बातें करें यक-ब-यक बादल उठें और भीग जाएँ तन-बदन और धुल जाएँ सभी महजूरियाँ और जब गीले दरख़्त जुगनूओं की आग से जलने लगें लौट कर आएँ तो कोई टोकने वाला न हो