रह-ए-वतन में क़दम से क़दम मिला के चलो निशान-ए-अज़्मत-ए-हिन्दोस्ताँ उठा के चलो रह-ए-वतन में क़दम से क़दम मिला के चलो बढ़ो दिलों में अज़ाएम की बिजलियाँ ले कर लबों पे हिम्मत-ओ-मेहनत की दास्ताँ ले कर हर इक मौज-ए-मसाइब से खेलते गुज़रो अजल भी सामने आए तो मुस्कुरा के चलो रह-ए-वतन में क़दम से क़दम मिला के चलो भुला दो बुग़्ज़-ओ-अदावत की दास्तानों को जला दो फ़िरक़ा-परस्ती के आशियानों को हर एक सम्त बिखेरो ख़ुलूस के नग़्मे दिलों में जज़्बा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा जगा के चलो रह-ए-वतन में क़दम से क़दम मिला के चलो कुछ और बज़्म-ए-वतन को सँवारना है अभी कुछ और अपने चमन को निखारना है अभी ये ग़फ़लतों का ज़माना नहीं वतन वालो दिखाओ जोश-ए-अमल ग़फ़लतें मिटा के चलो रह-ए-वतन में क़दम से क़दम मिला के चलो