रात भीग रही है आहिस्ता आहिस्ता चाँद मद्धम हो रहा है चश्म-ए-तर में गुज़िश्ता ख़्वाब के पैकर लिए खड़ी हूँ दरीचे के पास सूरज की किरनें आएँगी दबे पाँव मेरे जिस्म को अपनी तपिश से भर देंगी और तुम्हारे ख़यालों से महरूम कर देंगी फिर शुरूअ' होगा इंतिज़ार का बे-कराँ सिलसिला