पानी बहता चलता है कुछ दुख सहता चलता है सन्नाटा सा कुछ छाया है पानी कुछ मुरझाया है लहरें हैं कुछ मैली मैली मौजें हैं कुछ फैली फैली तारे झुक झुक पड़ते हैं पत्ते चुप चुप झड़ते हैं अब्र के टुकड़े उड़ते हैं कटते हैं फिर जुड़ते हैं तारे झम झम होते हैं ताइर चुपके सोते हैं शाख़ें सर-ब-गरेबाँ हैं बिल्कुल चुप और हैराँ हैं चाँद भी है कुछ खोया खोया कुछ जागा कुछ सोया सोया अब्र में छुप छुप जाता है हर तारे को चमकाता है कुछ बहका बहका चलता है पानी में भटकता चलता है शबनम पट पट रोती है जो आँसू है वो मोती है जंगल चुपका सोता है मंज़र पर सन्नाटा है हर पत्ते में ख़ामोशी है हर कोंपल में बे-होशी है हर ज़र्रा चुप है क़तरा चुप है अफ़्लाक का इक इक तारा चुप है सब गुल-हा-ए-रैहाँ चुप हैं चम्पा की सब कलियाँ चुप हैं दरिया की सब मौजें चुप हैं बल खाने वाली लहरें चुप हैं सोती है गुलों में चुप ख़ुशबू झिलमिल होते हैं जुगनू चलती है हवा कुछ धीमे धीमे फूलों की फ़ज़ा में चुपके चुपके हल्के हल्के गीत सुनाती रुक रुक कर इक तान लगाती भीगे भीगे फूल रसीले चुपके चुपके हैं कुछ हँसते ये ख़ामोशी और सन्नाटा और ये साकित मौज-ए-दरिया इन आँखों से क्या क्या देखूँ इस दुनिया का हर ज़र्रा देखूँ या-रब ये सब मंज़र क्या हैं सहरा क्या हैं घर दर क्या हैं ख़ामुशी क्या सन्नाटा क्या है आधी रात का दरिया क्या है ये सब क्यों है ये सब क्या है ख़ुद मैं क्या हूँ 'जमाल' क्या है