तसव्वुर में सारे जहाँ देखती हूँ मकीं देखती हूँ मकाँ देखती हूँ भटकती फिरी सारे आलम में हर सू जहाँ मैं नहीं हूँ वहाँ देखती हूँ चमकते सितारों में देखा है उस को मैं झरनों में उस को निहाँ देखती हूँ कभी चाँद सूरज की किरनों में ढूँडा वहाँ रंग-ब-रंग कहकशाँ देखती हूँ कभी उस को फूलों की ख़ुशबू में देखा फ़ज़ाओं में उस को अयाँ देखती हूँ ये मौसम बदलते जहानों के देखे मैं शबनम में उस का समाँ देखती हूँ ब-दोश-ए-सबा उड़ के पहुँची जहाँ तक मैं सम्त-ए-जहाँ बे-कराँ देखती हूँ चलूँ फिर यहाँ से ज़रा और आगे मैं साहिल पे मौज-ए-रवाँ देखती हूँ नज़र में जुनूँ के है नफ़रत हर इक सू दिलों में मैं तीर-ओ-कमाँ देखती हूँ न इंसाँ में उल्फ़त न इंसानियत है सुलगते लबों पर फ़ुग़ाँ देखती हूँ न पाया सुकूँ क्यों 'अदा' मैं ने आख़िर तपिश अपने दिल की तपाँ देखती हूँ