दोस्त मिला था तुझ को कैसा हैफ़ इतना भी याद नहीं जान फ़िदा करता था जिस पर दिल में उस की याद नहीं गर्दिश-ए-दौराँ ने जब उस को आह शिकस्ता-हाल किया देख कर उस के हाल-ए-ज़बूँ को तू ने कुछ न मलाल किया कौन शिकस्ता-हाल कहाँ है ये भी ध्यान आया न तुझे आह तसव्वुर ने ऐसे मोहसिन के तड़पाया न तुझे पास था अपने क़ौल का जिस को तू ने कुछ उस का पास किया आमद-ओ-रफ़्त-ए-देरीना का भूल के भी एहसास किया उस के दर्द से वाक़िफ़ हो कर तू ने ख़बर क्या ली उस की क़र्ज़ मोहब्बत जान के दिल से क्या कोई ख़िदमत की उस की दिल तेरे उस दोस्त का नाहक़ वक़्फ़-ए-सहर-ए-लिसानी था मेरी समझ में अब आया वो जम-ओ-ख़र्च ज़बानी था नादाँ इंसान तेरी दौलत तेरे साथ न जाएगी लैला-ए-मतलब दूर रहेगी तेरे पास न आएगी हस्र फ़क़त तुझ ही पर किया है तू ही इक ज़र-दोस्त नहीं दोस्त बहुत मिलते हैं लेकिन उन में अक्सर दोस्त नहीं दोस्त नहीं जो नाम की ख़ातिर अपने दोस्त के काम आए दोस्त वो है लोगों की ज़बाँ पर जिस का मिसालन नाम आए