कबूतर बोला ग़ुटरग़ूँ या अल्लाह मैं क्या करूँ दो अफ़राद के कुँबे को आख़िर मैं कैसे पालूँ क्या लाऊँ ख़ुद खाने को क्या इन के मुँह में डालूँ किस किस से फ़रियाद करूँ किस किस से दाना माँगूँ रोता कुढ़ता रहता हूँ ग़ूँ ग़ूँ ग़ूँ ग़ूँ ग़ुटरग़ूँ मुर्ग़ी बोली ऊँ हूँ हूँ देख मैं कितनी मोटी हूँ दस अफ़राद का कुम्बा है कैसी ख़ुश ख़ुश रहती हूँ सुब्ह सवेरे उठती हूँ दाना सब को चुगाती हूँ रब का शुक्र अदा करके ख़ुद इज़्ज़त से खाती हूँ तू भी उठ और मेहनत कर क्यों रोता है ग़ूँ ग़ूँ ग़ूँ