किस तरह रेत के समुंदर में कश्ती-ए-ज़ीस्त है रवाँ सोचो सुन के बाद-ए-सबा की सरगोशी क्यूँ लरज़ती हैं पत्तियाँ सोचो पत्थरों की पनाह में क्यूँ है आइना-साज़ की दुकाँ सोचो अस्ल सरचश्मा-ए-वफ़ा क्या है वज्ह-ए-बे-मेहरी-ए-बुताँ सोचो ज़ौक़-ए-ता'मीर क्यूँ नहीं मिटता क्यूँ उजड़ती हैं बस्तियाँ सोचो फ़िक्र-ए-सुक़रात है कि ज़हर का घूँट बाइ'स-ए-उम्र-ए-जावेदाँ सोचो लोग मा'नी तराश ही लेंगे कोई बे-रब्त दास्ताँ सोचो