वो मुझ से कहते हैं मुस्कुरा दो हुआ है जो कुछ उसे भला दो मैं उन से कह दूँ कि अब ये मुमकिन नहीं रहा है वो रंज-ए-हस्ती कि ज़हर बन कर मिरे लहू में समा चुका है मिरे तसव्वुर में बस चुका है वो मुझ से कहते हैं मुस्कुरा दो हुआ है जो कुछ उसे भुला दो मैं रात-दिन की उधड़पन में वो किर्चियाँ भी समेट लूँगी जो मेरी आँखों में चुभ रही हैं जो मेरी साँसों को डस रही हैं मुझे यक़ीं है कि काँच का ये हसीन धोका फ़रेब का बे-कराँ सरापा ज़रा सी आहट से गिर पड़ेगा वो मुझ से कहते हैं मुस्कुरा दो हुआ है जो कुछ उसे भुला दो सुनो ये मुमकिन नहीं रुबा अब कि मेरा दिल मेरा ख़ुश-नज़र दिल कोई तसल्ली नहीं सुनेगा कोई हवाला नहीं सुनेगा मैं जानती हूँ ये मेरा वहशी उदास दिल है जो तुझ से मुझ से अलग थलग है उसे मिटाना नहीं है मुमकिन उसे तो जंगल की आस है अब तलाश यादो की बास है अब मुझे तो हैरत सी हो रही है वो मुझ से कहते हैं मुस्कुरा दो