धर्म के नाम पे क़ातिल की हिमायत करना और फिर मुल्क के जलने की शिकायत करना कितना आसान है हिंदू-ओ-मुसलमाँ होना सिर्फ़ मुश्किल है किसी शख़्स का इंसाँ होना ज़ुल्म की धूप-ओ-इम्काँ भी नहीं छाँव का एक सा हाल है अब गाँव का सहराओं का ऐसे हालात में आँखों में लहू को लाओ नग़्मा-ए-इश्क़ को सब ज़ोर से गाओ गाओ कोई भी दाग़ न नफ़रत का जबीं पर आए बादशाह बहरा है अब ज़ोर से चीख़ा जाए