हमारे आगे पड़ा हुआ है ये फ़ासला जो वहीं मोहब्बत धड़क रही है क़दम के नीचे नज़र की हद तक है दश्त सहरा अज़ल से फैला तिरी नज़र में है इक किनारा मिरी निगह में है दूजी मंज़िल तो बीच उन के नज़र की हद तक जो फ़ासला है उसी के अंदर तिरी मोहब्बत धड़क रही है मिरी मोहब्बत धड़क रही है