मुल्ज़िम पकड़ने में जो मज़ा है इस से ज़्यादा शायद मुजरिम होने में है ग़ार के अंदर क्या है ग़ार के बाहर से सोचना अच्छा नहीं लगता पुराने पत्थर पर कंदा उसूल जानने को भूखों का हिस्सा ख़र्च करना क्या ज़रूरी है रीढ़ से लगा पेट अश्लोक से नहीं भरता इतना जानने को ग़ार में जाना क्या ज़रूरी है तुम ज़रा सोचो मैं ग़ार हो कर आता हूँ