मैं हार गया तुम जीत गए कितनी सादा सी मुसावात है बस यही तय करने को हम सदियों झगड़े बदलते वक़्त के साथ चलने की ख़ातिर अपने ही बनाए फ़र्सूदा क़ानून हम से आड़े न गए हाज़िर सच को सच मानने में कितने सच ग़लत ठहरते हैं और पहले ये मान लेते मिल बैठते तय करते जो आज हुआ गुज़रे कल में होता ख़ैर अब आओ बाहर मुंजमिद हुजूम को तारीख़ी फ़ैसला सुनाएँ ये अच्छे लोग सदियों से सोए नहीं सुर्ख़ियाँ बदलने के इंतिज़ार में जी मर रहे हैं लोगो सुनो हम में फ़ैसला हो गया है आख़िर-ए-कार इस सच को सच माना गया है तालियाँ पीटते पीटते थक जाओ तो घरों को लौटो दिन के उजाले में मीठा बाँटो कि ख़तरा टल गया है सदियों से जो ख़तरे में था अब ख़तरे से बाहर है फ़ैसला हो गया है कि तराज़ू पलड़ों में हम हम-पल्ला हम-वज़्न जाहिल हैं