धुआँ उठ रहा है उफ़ुक़ से धुआँ उठ रहा है समुंदर की साँसें उखड़ने लगी हैं बहुत धीमी धुन पर कोई माहिया गा रहा है हरकत हरकत हरकत हरकत क़ुआ शल हुए जा रहे हैं अचानक वो आबी परिंदों को उड़ता हुआ देखते हैं सभी चीख़ते हैं तू सुल्तान साहिब सरीर आमदी अला कुल्ले शयइन क़ादीर आमदी कलीसा शिवाले मुक़द्दस नदी अज़ाँ की फुवारों से सारा बदन भीगता है कोई आँखें फाड़े हुए कह रहा है कि वो धुँद के उस तरफ़ रौशनी रौशनी रौशनी रौशनी सभी चीख़ते हैं सराए में ताला पड़ा है! उफ़ुक़ से धुआँ उठ रहा है!!