बाँसुरी की धुन से चावल की बाली तक दिन फैला है और दरांती वाले हाथ में उस का दामन जैसे मल्लाहों के हाथ में जाल हो या फिर घोड़-सवार के हाथ में उस की रासें दिन फैला है दही बिलोने की आवाज़ से जामुन के पेड़ों तक चूड़ियाँ पहनने वाले हाथ में उस का दामन खिंचते खिंचते ओढ़नी बन जाएगा दिन फैला है आसमान से बच्चे की नन्ही मुट्ठी तक रफ़्ता रफ़्ता दूध में ढल जाएगा दिन फैला है रेल की आहनी पटरी पर और भाग रहा है छोटे शहरों की मंडी तक भागते भागते सुर्ख़ अनार में ढल जाएगा दिन फैला है गेंदे के फूलों में मैले बच्चों की ख़ाली जेबों में दिन फैला है मेरी तेरी आँखों में जो रफ़्ता रफ़्ता मुस्तक़बिल की धुन पे गाया उजले पानियों जैसा कोई गीत बनेगा