जब पहाड़ रो रहे थे मेरा जन्म हुआ मैं अपना ख़्वाब बेरी के पेड़ों में बो कर मुस्कुराहट की तलाश में निकल पड़ा रस्ते में मुझे एक डायरी मिली जिस के पहले सफ़्हे पर दर्ज था ज़िंदगी ख़ुद-बख़ुद कोई फ़ैसला नहीं करती बल्कि ये महज़ आप के फ़ैसलों के अंजाम से आप को मिलाती है डायरी के बाक़ी सफ़्हे बिल्कुल चुप थे मैं किसी म्यूजियम में तुम्हें नहीं पा सका क़ब्रिस्तान में मुझे महज़ ज़र्द फूलों की पत्तियाँ मिलीं किसी स्टेडियम में मुझे नहीं जाना किसी महफ़िल-ए-मौसीक़ी से मुझे लगाओ नहीं है प्यार करने के लिए वादियों की बजाए किसी आर्ट गैलरी का रुख़ करना ज़रूरी नहीं है किसी आर्ट गैलरी का रुख़ करना ज़रूरी नहीं है