रौशन-दान से आती आधी रौशनी का दुख जिस का हमल कभी नहीं ठहरेगा महसूस करो कमरे की तिश्नगी को जैसे किसी बाकरा के नंगे बदन को पलंग पर सुलगता हुआ छोड़ दिया गया हो महसूस करो अंधेरे की ज़ात को जो कमरे में बग़ैर ढोल की थाप के नाच रही है महसूस करो उस घुटन को जिस के रौशन-दान से निकलने का रास्ता रौशनी ने रोक रखा है महसूस करो उस तन्हाई का कर्ब जो ख़ुदा का गला घोंटना चाहती है मगर उसे अपने हाथ सुझाई नहीं दे रहे महसूस कर सकते हो तो करो अंधेरे के मुसव्विर को और छीन लो उस से वो ब्रश जिस से वो अज़िय्यतें पेंट करता है