रंग में डूब के निखरी है फ़ज़ा आज की रात दामन-ए-फ़र्श में है नूर-ए-ख़ुदा आज की रात गुदगुदाती हुई एहसास का हर तार-ए-लतीफ़ गुनगुनाती हुई फिरती है हवा आज की रात बास का लम्स मसीहा है सबा आब-ए-हयात दर्द को ढूँढती फिरती है दवा आज की रात ओढ़ ली रौनक़-ए-बाज़ार-ओ-दर-ओ-बाम ने भी रामिश-ओ-रंग की महफ़िल की क़बा आज की रात शौक़-ए-तज़ईन से बे-साख़्ता महकी है हया लक्ष्मी-रूप सुहागन ने भरा आज की रात दीप ही दीप हैं हर सम्त जिधर भी देखो जल्वा-ए-हुस्न-ए-तनासुब है सिवा आज की रात जगमगाते हैं लब-ए-बाम सितारों की तरह कर गई नक़्ल-ए-ख़ुदा ख़ल्क़-ए-ख़ुदा आज की रात शोर और गुल में नुमायाँ है तसलसुल तरतीब थाप तबले की है आहट की सदा आज की रात बचपना बंदिश-ए-पर्वा से बराबर मफ़रूर खेल और कूद में है मस्त हवा आज की रात नार से छेड़ रहे नूर के दीवानों की क्या हुआ हाथ जला पैर जला आज की रात बाज़ी-ए-जाँ के खिलाड़ी हैं यही खेलने वाले देखिए ये भी पनपने की अदा आज की रात ज़ीस्त इक मश्ग़ला-ए-ऐश नज़र आती है सूरत-ए-ज़िंदा-दिली क्या न हुआ आज की रात