दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायान है इस तरह हैं कूचा-ओ-बाज़ार पर नक़्श-ओ-निगार हो अयाँ हुस्न-ए-निगारिस्ताँ की जिन से ख़ूब रे गर्म-जोशी अपनी बा-जाम-ए-चराग़ाँ लुत्फ़ से क्या ही रौशन कर रही है हर तरफ़ रोग़न की मय माइल-ए-सैर-ए-चराग़ाँ नख़्ल हर जा दम-ब-दम हासिल-ए-नज़्ज़ारा हुस्न-शम-ए-रूयाँ पै-ब-पै आशिक़ाँ कहते हैं माशूक़ों से बा-इज्ज़-ओ-नियाज़ है अगर मंज़ूर कुछ लेना तो हाज़िर हैं रूपे गर मुकर्रर अर्ज़ करते हैं तो कहते हैं वो शोख़ हम से लेते हो मियाँ तकरार-ओ-हुज्जत ता-ब-कै कहते हैं अहल-ए-क़िमार आप में गर्म इख़्तिलात हम तो डब में सौ रुपे रखते हैं तुम रखते हो कै जीत का पड़ता है जिस का दानों वो कहता है यूँ सू-ए-दस्त-ए-रास्त है मेरे कोई फ़र्ख़न्दा-पय है दसहरे में भी यूँ गो फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर' पर दीवाली भी अजब पाकीज़ा-तर त्यौहार है