नक़ली आँख By Nazm << दीवाली सर्दी >> गुफ़्तुगू ने ली करवट मुस्कुरा उठीं कलियाँ खिलखिला उठे एहसास नफ़्स के परिंदे की फिर ज़रा बढ़ी पर्वाज़ मैं ने फिर उसे छेड़ा उस ने फिर मुझे छेड़ा ऐन छेड़-ख़्वानी में जब हुआ जुनूँ बेदार एक आँख दिलबर की टप से गिर पड़ी नीचे Share on: