तीरगी के सियाह-ग़ारों से शहपरों की सदाएँ आती हैं ले के झोंकों की तेज़ तलवारें ठंडी ठंडी हवाएँ आती हैं बर्फ़ ने जिन पे धार रक्खी है एक मैली दुकान तीरा ओ तार इक चराग़ और एक दोशीज़ा ये बुझी सी है वो उदास सा है दोनों जाड़ों की लम्बी रातों में तीरगी और हवा से लड़ते हैं तीरगी उठ रही है मैदाँ से फ़ौज-दर-फ़ौज बादलों की तरह और हवाओं के हाथ हैं गुस्ताख़ तोड़े लेते हैं नन्हे शोले को नोचे लेते हैं मैले आँचल को लड़की रह रह के जिस्म ढाँपती है शोला रह रह के थर थराता है नंगी बूढ़ी ज़मीन काँपती है तीरगी अब सियह-समुंदर है और हवा हो गई है दीवानी या तो दोनों चराग़ गुल होंगे या करेंगे वो शोला-अफ़्शानी फूँक डालेंगे तीरगी की मता पर मुझे ए'तिमाद है इन पर गो ग़रीब और बे-ज़बान से हैं दोनों हैं आग दोनों हैं शोला दोनों बिजली के ख़ानदान से हैं