ख़्वाहिश की तस्कीं की ख़ातिर अपने ला-यानी जज़्बों को लौह-ए-दिल पर आँक रहे हैं देश बिदेश की ख़ाक छान के गिरते पड़ते फाँक रहे हैं अपनी दीद से ग़ाफ़िल रह कर ना-दीदा को झाँक रहे हैं
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