मुझे एहसास है अब भी उस इक पल का जो मेरी ज़िंदगी की उँगलियों से इस तरह निकला कि जैसे डोर हाथों से निकल कर उँगलियों को काट जाती है पतंगें रक़्स करती हैं हवा के दोष पर और कोई अपनी ज़ख़्म-ख़ुर्दा उँगलियों को अपने होंटों में दबाए ज़िंदगी का ज़ाइक़ा महसूस करता है पतंगों की बजाए आसमाँ की वुसअ'तों में दायरा महसूस करता है