बादल बरखा नदियाँ सागर सागर बादल बरखा नदियाँ एक डोर का हिस्सा हैं फ़र्दा के साँचे में कल और आज यूँ ही ढल जाते हैं कल और आज और कल आपस में जुदा नहिं हो पाते हैं गुज़रे लम्हे ख़त्म नहिं हो जाते हैं मेरा नज़ारा मेरी नज़र मेरे हवाले मेरे तेवर मेरा तलफ़्फ़ुज़ मेरी ज़बान मेरी जिहालत मेरा ज्ञान मेरे तख़य्युल मेरे रुज्हान मेरा पिंजरा मेरी उड़ान मेरी चाल और मेरा ढब मेरी हस्ती मेरी ज़ात सब जज़्बात और सब हालात टुकड़ों में नहीं बट सकते मेरा माज़ी हाज़िर है मेरा फ़र्दा नाज़िर है कल आज और कल आपस में जुदा नहीं हो पाते हैं गुज़रे लम्हे ख़त्म नहीं हो पाते हैं