नौजवानान-ए-वतन शान-ए-वतन बन जाओ तुम ही कश्ती भी हो साहिल भी हो माँझी तुम हो अहल-ए-उल्फ़त के लिए गौतम-ओ-गाँधी तुम हो वक़्त पड़ जाए तो टीपू से सिपाही तुम हो तुम ने हर दौर में रक्खी है यूँही शान-ए-वतन रात तारीक है सूरज की किरन बन जाओ पाक जमुना की क़सम अज़्मत-ए-गंगा की क़सम मरमरीं ताज की दीवार-ए-अजंता की क़सम सर उठाए हुए इस कोह-ए-हिमाला की क़सम ज़र्रे ज़र्रे के लबों पर है मोहब्बत का भजन प्यार की राह में तुम प्रेम पवन बन जाओ अपनी धरती को हर आफ़त से बचाना होगा भूक और क़हत की ला'नत को मिटाना होगा सख़्त चट्टानों को गुलज़ार बनाना होगा लहलहाते हुए खेतों की ये रंगीन फबन धूप है तेज़ बहुत साया-फ़गन बन जाओ