ये सीनरी है ये ताज-महल ये कृष्ण हैं और ये राधा हैं ये कोच है ये पाइप है मिरा ये नॉवेल है ये रिसाला है ये रेडियो है ये क़ुमक़ुमे हैं ये मेज़ है ये गुल-दस्ता है ये 'गाँधी' हैं 'टैगोर' हैं ये ये शाहनशा ये मलिका हैं हर चीज़ की बाबत पूछती है जाने कितनी मासूम है ये हाँ इस पर रात को सोने से मीठी मीठी नींद आती है हाँ इस के दबाने से बिजली की रौशनी गुल हो जाती है समझी कि नहीं ये कमरा है हाँ मेरा ड्राइंग-रूम है ये इतनी जल्दी मज़दूर औरत आख़िर ये गले में बाँहें क्यूँ ले देर हुई अब भाग भी जा बस इतनी मोहब्बत काफ़ी है इस मुल्क के भूके प्यासों को पैसे ही की हाजत काफ़ी है इतनी हँसमुख ख़ामोशी इतनी मानूस निगाहें क्यूँ मैं सोच रहा हूँ कुछ बैठा पाइप के धुवें के बादल में मैं छुप सा गया हूँ इक नाज़ुक तख़्ईल के मैले आँचल में
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