या ख़ुदा हम को आदमियत दे मुल्क और क़ौम की मोहब्बत दे कर अता इस क़दर तमीज़ हमें कि हो अपना वतन अज़ीज़ हमें इस की ख़िदमत को फ़ख़्र जानें हम इस की हर बात दिल से मानें हम फूट और इफ़्तिराक़ खो दें हम पाप की नाव को डुबो दें हम हसद-ओ-कीना ओ ख़ुसूमत ओ शर कर दें इन में से सब को मुल्क-बदर एक हो जाएँ सब ख़वास ओ अवाम न रहे ग़ैरियत का मुल्क हैं नाम सुल्ह ओ अम्न-ओ-अमाँ हो चार तरफ़ आफ़ियत हुक्मराँ हो चार तरफ़ इत्तिहाद-ए-अमल से हों सब काम कोई दाना रहे न बंदा-ए-दाम मुल्क हो ग़ैर के असर से पाक ख़िर्मन-ए-जौर-ओ-मासियत हो ख़ाक हो ये वीराना ग़ैरत-ए-गुलज़ार फिर से आए वतन में ताज़ा बहार पट्टा उतरे गले से लानत का ख़त्म हो दौर फ़क़्र ओ ज़िल्लत का