बर्क़-पा लम्हों की इक ज़ंजीर में जकड़ा हुआ वो शिकस्ता-पा उन्ही रस्तों से गुज़रा और नादीदा ख़ुदाओं का हुजूम ख़ंदा-ज़न आँखों से उस की ना-रसाई का तमाशा देख कर कहता रहा तू ने चाहा था मगर तेरे मुक़द्दर में न था जैसे उस की बेबसी में वो कभी शामिल न थे वो कहाँ गुम हो गया कोई नक़्श-ए-पा नहीं जिस की ज़बाँ एक हर्फ़-ए-ना-शुनीदा ही कहे और मैं दिन-रात के सहरा में उस को ढूँढ कर पाने की कोई आरज़ू ले चलूँ रास्तों पर कोई नक़्श-ए-पा नहीं कोई निशाँ बाक़ी नहीं नक़्श गर लम्हों की हर तहरीर दस्त-ए-बे-निशाँ के लम्स क़ातिल का फ़साना बन गई शहर के लोगों तुम्हारे रौज़न-ए-चाक-ए-जिगर भी बंद हैं तुम में हर इक ने किसी ख़िश्त-ए-तमन्ना संग-ए-नफ़रत से ये चश्म-ए-रौज़न-ए-दिल बंद कर के आख़िरी उम्मीद का सूरज बुझा कर रख दिया और अब लज़्ज़ात की दुनिया में गुम सूद-ओ-सौदा की असीरी पर रज़ा-मंद का तौक़-ए-बे-निशाँ पहने हुए ख़ुश हो कि जन्नत मिल गई मैं अकेला तंग राहों संग-दिल सड़कों पे उस को ढूँडने कैसे चलूँ कोई नक़्श-ए-पा नहीं मिलता मुझे और सारा शहर ये गोया दरख़्तों का भरा जंगल फ़क़त शोर-ए-अबस का सिलसिला है कोई हर्फ़-ए-ना-शुनीदा से नहीं वाक़िफ़ यहाँ लहज़ा लहज़ तीरा-तर होती हुई ये शाम भी रात के क़ुल्ज़ुम में गिर कर बे-निशाँ हो जाएगी और इक मौज-ए-फ़ना इस रात से तारीक-तर इस भरे जंगल चमकते शहर पर छा जाएगी एक मैं हूँ राहत ख़्वाब-ए-शबीना मेरी क़िस्मत में नहीं दोपहर की धूप शब की तीरगी मेरा मुक़द्दर बन गई रात को फिर सई-ए-ला-हासिल का ज़ख़्म ला-दवा उन सियह-रस्तों पे उस की जुस्तुजू करने मुझे ले आएगा ऊंघी सड़कों पे अपनी चाप सुन कर फिर मिरे दिल का वही ज़ख़्म-ए-कुहन सद-ज़बान हो जाएगा कौन मेरी दास्ताँ सुन ले कि मैं उस को पाने की तमन्ना के तुफ़ैल इस भरे जंगल में तन्हा हूँ कोई भी राज़-दाँ मेरा नहीं दोपहर की धूप में उस ने क्यूँ यूँ मुज़्महिल नज़रों से देखा था मुझे उस की आँखों में सिसकती रूह क्यूँ मेरे लिए चाक-ए-जिगर बन कर रही काश ये चाक-ए-जिगर चाक-ए-गरेबाँ बन सके ताकि मेरी सई-ए-ला-हासिल का ज़ख़्म ला-दवा लज़्ज़त आवारगी का ताना-ए-क़ातिल न बिन जाए कहीं शहर वाले ख़ुश हैं चश्म-ए-रौज़न-ए-दिल अब किसी ख़िश्त-ए-तमन्ना तूदा-ए-उम्मीद संग-ए-आरज़ू से बंद है एक मैं हूँ मेरा चाक-ए-दिल किसी सोज़न से सिलता ही नहीं ये किसी संग-ए-तमन्ना तूदा-ए-उम्मीद से भरता नहीं और जिस की जुस्तुजू में रात-दिन बर्ग-ए-आवारा बना फिरता हूँ मैं उस का नक़्श-ए-पा कहीं मिलता नहीं उस का नक़्श-ए-पा कहीं मिलता नहीं