इक आहट सी दस्तक बन कर मिरे दिलकश रंग भरे ख़्वाबों की ताल बनी फिर सर में ढली इक गीत लहू में फैल गया मैं इस को पेंग बना लेती मैं क़ौस-ए-क़ुज़ह को छू आती पर गीत का सर ही टूट गया और सपना सारा झूट हुआ अब पहर ढले शब गलियों में जब घूमती है जब आहट दस्तक बनती है मैं सोचती हूँ है कौन भला कोई है भी सही