मेरी दानिस्त में हम-जिंस हैं होली और ईद दोनों हैं लुत्फ़-ओ-मसर्रत के लिए रोज़-ए-सईद आम है आज मुलाक़ात नहीं फ़र्क़ का काम वा है आग़ोश-ए-मोहब्बत न सही दीद-ओ-शुनीद फ़ज़्ल-ए-बारी से जो कल शाम हुई चाँद की दीद आ गई हाथ हक़ीक़त में मसर्रत की कलीद दीद-ए-अक़्दस से हुई ऐन ख़ुशी की तौलीद ग़ैब से दिल को हुई जज़्ब-ए-वफ़ा की ताकीद आज होती है नए सर से वफ़ा की तज्दीद ये मिलन ईद का है क़ुफ़्ल-ए-मोहब्बत की कलीद आज होती है हसद बुग़्ज़-ओ-जफ़ा की तरदीद इस लिए अहल-ए-वतन सब को मुबारक हो ईद ये हक़ीक़त है कि है आज का दिन रोज़-ए-सईद दिल से दिल मिलता है होती है वफ़ा की तज्दीद ये नज़ारा भी मुलाक़ात का है क़ाबिल-ए-दीद लुत्फ़-दर-लुत्फ़ है हर लुत्फ़ है इक लुत्फ़-ए-मज़ीद