ऐ हिमाला तेरी अज़्मत का बयाँ मुमकिन नहीं जिस का है सरताज तू हिन्दोस्ताँ की है ज़मीं तेरी ऊँचाई के आगे झुकता है अर्श-ए-बरीं है उलुल-'अज़मी तिरी मशहूर-ए-आलम बिल-यक़ीं है बुलंदी से तिरी वाबस्ता 'सूफ़ी' शान-ए-हिन्द तेरी अज़्मत में न आने देंगे फ़र्क़ अरकान-ए-हिन्द