कल रात ज़ोरों की बरसात थी आँखों के आसमान पर भी यादों के बादल छाए थे बरसात की बूँदें और आँखों के बादल साथ साथ रात भर बरसते रहे मानो हर बरसती बूँद ख़ामोशियों को तोड़ता हुआ एक लफ़्ज़ बन गई थी दोनों के बीच गुफ़्तुगू रात भर हुई थी सुब्ह देखा आसमान साफ़ था वो खुल कर मुस्कुरा रहा था मानो उस के सारे गिले शिकवे बह गए थे मगर आँखों के बादल अब भी ज्यूँ के त्यूँ थे वो बरसे तो थे मगर हर बूँद जैसे दिल के सागर में उतर गई थी और एक बार फिर दिल से आँखों तक का सफ़र तय करने के लिए उसे इंतिज़ार था तो सिर्फ़ एक और बरसात का