बैठा हुआ हूँ सुब्ह से लॉरेंस-बाग़ में अफ़्कार का हुजूम है मेरे दिमाग़ में छाया हुआ है चार तरफ़ बाग़ में सुकूत तन्हाइयों की गोद में लेटा हुआ हूँ मैं अश्जार बार बार डराते हैं बन के भूत जब देखता हूँ उन की तरफ़ काँपता हूँ मैं बैठा हुआ हूँ सुब्ह से लॉरेंस-बाग़ में लॉरेंस-बाग़ कैफ़ ओ लताफ़त के ख़ुल्द-ज़ार वो मौसम-ए-नशात वो अय्याम-ए-नौ-बहार भूले हुए मनाज़िर-ए-रंगीं बहार के अफ़्कार बन के रूह में मेरी उतर गए वो मस्त गीत मौसम-ए-इशरत-फ़िशार के गहराइयों को दिल की ग़म आबाद कर गए लॉरेंस-बाग़ कैफ़ ओ लताफ़त के ख़ुल्द-ज़ार है आसमाँ पे काली घटाओं का इज़्दिहाम होने लगी है वक़्त से पहले ही आज शाम दुनिया की आँख नींद से जिस वक़्त झुक गई जब काएनात खो गई असरार-ए-ख़्वाब में सीने में जू-ए-अश्क है मेरे रुकी हुई जा कर उसे बहाऊँगा कुंज-ए-गुलाब में है आसमाँ पे काली घटाओं का इज़्दिहाम अफ़्कार का हुजूम है मेरे दिमाग़ में बैठा हुआ हूँ सुब्ह से लॉरेंस-बाग़ में