तुम से बिछड़ के ज़ीस्त में ग़म का नुज़ूल रह गया बुझ गया रंग-ए-शाइ'री हर्फ़-ए-फ़ुज़ूल रह गया मेरे लिए तो हर नफ़स दुख का हुसूल रह गया दिल का जो इक गुलाब था बन के वो धूल रह गया सर्व-ओ-समन चले गए सिर्फ़ बबूल रह गया शाम की ज़ुल्फ़ में सजा याद का फूल रह गया मुझ को अकेला देख कर चाँद मलूल रह गया