आगही By Nazm << बुक फ़ैर एक ग़ैर अहम शाम का तज़्कि... >> निस्फ़ुन्नहार से मेरी सोचों का आफ़्ताब रखता है लेयर लेयर मेरी ज़ीस्त की किताब मुझ में इधर बिछा के ये दरिया यक़ीन के ठोकर उधर लगा के दिखा के मुझे सराब ऐ अल-अमाँ ये भड़की हुई आगही की प्यास दश्त-ए-जुनूँ में चीख़ रही हूँ मैं आब आब Share on: