वो बोसीदा कपड़ों में मल्बूस मैली कुचैली वो दुबली सी लड़की वो मासूम और भोली सी लड़की जो हर रोज़ आती थी मेरी दुकाँ पर झिझकते हुए अपने मैले से हाथों को आगे बढ़ा कर ये कहती थी मुझ से बड़े भोले-पन से कि बाबू बड़ी भूक लगती है बस आठ आने ही दे दो मगर आज फिर छे बरस बाद जब मैं ने देखा तो इतना बड़ा फ़र्क़ पाया है उस में कि वो साफ़ सुथरे लिबासों में किस शान से घूमती है जवानी की पोशाक में उस का गोरा बदन आते जाते हुए राहगीरों को अपनी तरफ़ खींचता है वो हुस्न-ओ-जवानी से निखरी हुई है उसे वक़्त ने एक तोहफ़ा दिया है सुना है कि अब पेट भरने की ख़ातिर वो हाथों को फैलाए फिरती नहीं है वो अब शहर के नौजवानों के हाथों रईसों के हाथों शरीफ़ों के हाथों जवानी का महका चमन बेचती है वो अपना कटीला सजीला रसीला बदन बेचती है