भाई ऐसी नज़्म अब लिख्खूँ कैसे इस्याँ की बातें हों जिस में या ऐसी लड़की का क़िस्सा पैकर हो जिस हुस्न का जिस के तीर-ए-निगाह से सीना कोई हुआ हो ज़ख़्मी और फिर वस्ल की आस में जज़्बे उस के फिस्ले हों तो ऐसी नज़्म अब लिख्खूँ कैसे या फिर जिस में ऐसी लड़की का क़िस्सा हो जिस ने किसी की हवस को पागल सा हो बनाया जिस की गहरी झील में भाई उस ने उतर कर प्यास बुझानी चाही हो जब ऐसी नज़्में लिख कर शाइ'र ख़ुद को भी उर्यां करता हो ऐसी नज़्में लिख्खूँ कैसे ऐसी नज़्में लिखने पर तो तौबा की भी हाजत होगी भाई अब तो उम्र की उस सरहद पर हूँ मैं जिस के बाद जहन्नुम होगा जिस में पत्थर और पानी का आग उगलता और उबलता एक भयानक मंज़र होगा जिस का कोई अंत न होगा ऐसा आतिशनाक सा दरिया लम्बा चौड़ा शोर मचाता बहता होगा जिस का रंग भी काला होगा जाँ-फ़रसा नज़्ज़ारा होगा उफ़ वो जाने कैसा होगा वहीं पे लेकिन बुलंदियों पर जन्नत होगी जिस की आराइश की कोई हद भी न होगी हर-सू होगी रब की तजल्ली दिल को मसर्रत बख़्शने वाला मंज़र भी ला-सानी होगा मेरे नसीब में क्या लिक्खा है कैसे जानूँ अल्लह जाने तब क्या होगा मैं उस दिन की तय्यारी में मसरूफ़ हूँ भाई ना-मुम्किन है जिस से रिहाई या'नी जीते जी ही इक दिन सच का ये तल्ख़ाबा-ए-शीरीं हर ज़ी-रूह को पीना होगा मौत का ज़ाइक़ा चखना होगा