गाड़ी गुज़र गई धुएँ और धूल की छतरी ने मिट्टी को ढाँप दिया कबूतर ख़ुश-इलहान मुअज़्ज़िन के एराब जुड़े जुमलों के बीच काबुक से सर टकराता है टूटी मेज़ पे मैं ने आँखें रखी हैं और गठरी बन कर कुर्सी पे बैठा हूँ मैं जो अपने मैले कफ़न की सोंधी ख़ुशबू सूँघ चुका हूँ जान गया हूँ इक या दो फ़र्लांग फ़रार का रास्ता है जीना जीते रहना ही ने'मत है जंगल है और गिर्ये की शाख़ों से दस्त-ए-सवाल कासा बन कर लटका है मैं कासे में छुप कर बैठा हूँ घर का सारा साज़-ओ-सामान बेच कर निकला हूँ ये सोच कर घर से निकला हूँ