धुएँ और धूल में काला गुलाब यहाँ पर सातवाँ दर इस्म से महरूम बोसे की विलादत के लिए सूखे हुए होंटों की शिकनें बर्फ़ की क़ाशें ज़मीं का बाँझ-पन अपना हिसार शुनीदा ना-शुनीदा रास्तों की गर्म रातें जिस्म के बालों का ऊनी कोट सिंध के दरिया की लहरों की रवानी दो तरफ़ केलों के बाग़ीचे निगाहों की बिखरती रेत में ता'मीर होते बारबर सह-मंज़िला अश्जार के पीछे लरज़ता ट्राम का लोहा गुज़रती रात की चर्बी पे जमते आइने से दिन ख़स-ओ-ख़ाशाक की बाड़ों के पीछे सिम-ज़दा उम्रों के बूटे पुर-शिकन चोग़ों में ढलते मास बे-गिर्या यही गर्दान पीले हर्फ़ की ज़ंजीर गमलों में उगाए सारे पौदे क़ुफ़्ल बन कर सामने हैं जिस्म के आटे में दोनों हाथ दिन और रात दिन और रात गूँधते हैं पहली सूरज की किरन के साथ मछेरों के तने रिसे समुंदर की जड़ी हँसुली पे गिरते हैं