आँखें अंधे कुएँ की मानिंद दूर अंधेरे रस्तों पर पानी को खुरच रही हैं गहरी धुंद की चादर ओढ़े कौन अभागन फूट फूट के रो भी न पाई सब्र की रोटी चुप का सालन सब ज़ाइक़ों से कड़वा ज़हर गले के अंदर कुंद छुरी की मानिंद अटके क्या बोले सारे लफ़्ज़ अपने लहू की गर्दिश से बे-परवा लब पर उतरें मआ'नी के छिलकों को उतारूँ नंगी रूहें कुछ न कहेंगी दुनिया सब कुछ उस को वापस कुछ भी न लेना हाथ तुम्हारे सदा ही भरे रहेंगे जज़्बों के फूलों से मत कुछ कहना वर्ना सारा मलबा तुम्हारे ऊपर आन गिरेगा कच्ची दीवारों के नाते तस्वीरों के रंगों से भी कच्चे हाथों और ज़बानों पर गुज़री बातों के सारे सुख इक इक कर के मिटते जाते हैं मन की सारी शक्ति बीच समुंदर डूब गई है हवा में आँसू-गैस के गोले छूटें तो सब रोना एक ही वक़्त रो लें त्याग का लम्बा रस्ता बाँहें फैलाए अपनी ओर बुलाता है आगे जाओ सब कुछ सुनो आओ इस आवाज़ के रस्ते पर चलते जाएँ दीवार दूर से दूर