तालियों की गूँज ज़ाइल हो चुकी हाल ख़ाली हो चुका दाद के बक्से उलट कर चल दिए लोग मेरी चीख़ती नज़्मों की बोली दे चुके मैं जम्अ' तफ़रीक़ की मद में बिना तरतीब साँसों की घुटन से चूर हूँ काश धरती आसमाँ की वुसअ'तों को जानती ख़्वाब में पिन्हाँ हक़ीक़त को हक़ीक़त मानती हाँ मगर इन दास्तानों का सिकंदर कौन है कौन है उफ़्तादगी की साअ'तों का हम-नवा कौन है तफ़्हीम की तिश्ना-लबी का राज़दाँ कौन है कोई नहीं वो जो आए थे वो आ कर जा चुके