एक तितली उड़ी गुल्सिताँ को चली डाली डाली बढ़ी ग़ुंचा ग़ुंचा फिरी उस की इक फूल से दोस्ती हो गई ख़ुश-नवा सब परिंदे चहकने लगे ख़ार तक ख़ुश-दिली से महकने लगे फूल ने जड़ की मेहनत का रस ख़ुद निछावर किया और तितली मोहब्बत के रंगीन पल छोड़ कर उड़ गई फिर न तितली मिली और न गुल खिल सका बूटे बूटों तुले आ गए और फिर गुल्सिताँ छावनी बन गया
This is a great तितली पर शायरी.