जो एकता की लगन हो दिल में तो बे-क़रारी न पास आए किसी का जादू किसी का टोना हमारे ऊपर नहीं चलेगा अगर हम अपने को ख़ुद समझ लें अगर हम अपने को आप परखें न कोई आफ़त कहीं उठेगी न दिल दुखेगा न घर जलेगा हर एक बच्चा है एक बच्चा न है किसी का कभी अदू वो ये भेद भाव ये फ़ासला सब ख़ुद अपना पैदा किया हुआ है किसी का मज़हब नहीं ये कहता कि तुम न जीने दो दूसरों को ख़ुदा तो सब का है एक लेकिन मक़ाम-ए-सज्दा जुदा जुदा है सुना है कल तक थे वो पड़ोसी बड़ा था आपस में भाई-चारा वही पड़ोसी तो अब भी हैं वो मगर है आपस में जंग कैसी मिटा दो गर दिल से भेद-भाव तो फ़ासला फिर कोई न होगा तुम्हें ये एहसास ख़ुद ही होगा कि है दिलों में तरंग कैसी