उस की ख़्वाहिश का इज़हार मासूम हद तक रिवायत की बंदिश में उलझा हुआ था कि मैं उस के हाथों पे मेहंदी लगाऊँ मगर शायरी एक देवी है जिस की जलन को कभी लिखने वालों के हाथों पे इतना तरस ही नहीं आ सका है कि बाग़ी दिमाग़ों में भी आम रस्तों की तक़लीद भरती या हाथों की जुम्बिश ख़िरद के तसल्लुत से आज़ाद करती मिरे हाथ भी ज़ेहन में घूमते कुछ सवालों के साँचे बनाने लगे उस के हाथों पे मेहंदी से एटम के मॉडल बनाने लगे और मॉडल भी ऐसे जो मतरूक थे जिस में ज़र्रा बहुत दूर से घूमता झूमता दायरा दायरा रफ़्ता रफ़्ता किसी मरकज़े की तरफ़ गामज़न बस तसलसुल से बढ़ती हुई इक कशिश के असर में रहे इक यक़ीनी फ़ना के सफ़र में रहे साल-हा-साल चीज़ें बदलती गईं वक़्त ने दर्द के जो भी लिरिक्स् लिखे उन को गाना पड़ा जाने कैसे मगर उस को जाना पड़ा मैं ने वैसे तो ये उम्र भर सोचना ही नहीं था मगर शायरी एक देवी जलन नासटॉलजिक ज़मानों की तस्वीर लॉजिक् के कुछ मसअले पूछने लग गए हैं भला ऐसा जाहिल कहाँ पर मिलेगा कि जो कीमिया पढ़ के भी इक त'अल्लुक़ में पहले तो ज़र्रा बने और निभाते हुए डाइˈनैमिक्स् के वो ही मतरूक मॉडल चुने और तसलसुल से बढ़ती हुई इक कशिश के असर में रहे इक यक़ीनी फ़ना के सफ़र में रहे