जहाँ में इज़्तिराब है नहीं नहीं जहाँ ही इज़्तिराब है हज़ार-हा कवाकिब-ओ-नुजूम-हा-ए-कहकशाँ से ऐटमों की कोख तक मदार-दर-मदार हर वजूद बे-क़रार है ये मेहर-ओ-माह ओ मुश्तरी से हर इलेक्ट्रॉन तक ये झूम झूम घूमने में जिस तरह का रक़्स है मुझे समझ में आ गया जहान तेरा अक्स है वो अक्स जो जगह जगह क़दम क़दम रिधम पे है जहान ऐन सुर में है जहान ऐन सम पे है जहाँ तरन्नुमों की लिस्ट में से इंतिख़ाब है जो तुझ हसीं दिमाग़ के हसीन ला-शुऊ'र में बना हो ऐसा ख़्वाब है जहान इज़्तिराब है मुझे समझ में आ गया है ये जहाँ ख़ला मकाँ ज़माँ के चंद तार से बना हुआ सितार है उसे कहो किसी तरह सितार छेड़ती रहे उसे कहो कि थोड़ी देर और बोलती रहे