बर्फ़ की चादरें जिस तरह बिछी हों हर-सू मुंजमिद हो गई सारी दुनिया धुंद में लिपटी हुई ज़हर-आलूद हवा अब तो कुछ भी नहीं कहने को यहाँ यही बेहतर है कि ख़ामोश रहो सुब्ह तुम उठ के न अख़बार पढ़ो दीदा रेज़ा न करो मीडिया नश्तर करे शहर में गाँव में गली कूचों में भेड़ियों और दरिंदों की हुई है यलग़ार तुम मगर कुछ न सुनो मूँद लो आँखें अपनी नींद आए न अगर नींद की गोली खा लो