फ़साद By Nazm << उर्दू ज़बाँ चलना और सोचना >> प्लेग हैज़ा-ओ-चेचक-ओ-ज़लज़ले सैलाब हरी-भरी सी फ़स्ल कल तलक उजाड़ते थे मगर आज कहीं शो'लों धमाकों की शक्ल लेते हैं कहीं ये ख़ून की होली का रूप भरते हैं हरी-भरी सी फ़स्ल अब भी ये उजाड़ते हैं फ़साद ख़ून में शामिल है शायद फ़स्द ये खोलते रहते हैं शायद Share on: