फ़ुर्सत की तमन्ना में

यूँ वक़्त गुज़रता है
फ़ुर्सत की तमन्ना में
जिस तरह कोई पत्ता
बहता हुआ दरिया में
साहिल के क़रीब आ कर
चाहे कि ठहर जाऊँ
और सैर ज़रा कर लूँ
उस अक्स-ए-मोशज्जर की
जो दामन-ए-दरिया पर
ज़ेबाइश-ए-दरिया है
या बाद का वो झोंका
जो वक़्फ़-ए-रवानी है
इक बाग़ के गोशे में
चाहे कि यहाँ दम लूँ
दामन को ज़रा भर लूँ
उस फूल की ख़ुशबू से
जिस को अभी खिलना है
फ़ुर्सत की तमन्ना में
यूँ वक़्त गुज़रता है
अफ़्कार मईशत के
फ़ुर्सत ही नहीं देते
मैं चाहता हूँ दिल से
कुछ कस्ब-ए-हुनर कर लूँ
गुल-हा-ए-मज़ामीं से
दामान-ए-सुख़न भर लूँ
है बख़्त मगर वाज़ूँ
फ़ुर्सत ही नहीं मिलती
फ़ुर्सत को कहाँ ढूँडूँ
फ़ुर्सत ही का रोना है
फिर जी में ये आती है
कुछ ऐश ही हासिल हो
दौलत ही मिले मुझ को
वो काम कोई सोचूँ
फिर सोचता ये भी हूँ
ये सोचने का धंदा
फ़ुर्सत ही में होना है
फ़ुर्सत ही नहीं देते
अफ़्कार मईशत के
This is a great फुर्सत शायरी. True lovers of shayari will love this तमन्ना पर शायरी. Shayari is the most beautiful way to express yourself and this तमन्ना की शायरी is truly a work of art.

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