उस ईंट को भूल जाना चाहिए जिस के नीचे हमारे घर की चाबी है जो एक ख़्वाब में टूट गया हमें भूल जाना चाहिए उस बोसे को जो मछली के काँटे की तरह हमारे गले में फँस गया और नहीं निकलता उस ज़र्द रंग को भूल जाना चाहिए जो सूरज-मुखी से अलाहिदा दिया गया जब हम अपनी दोपहर का बयान कर रहे थे हमें भूल जाना चाहिए उस आदमी को जो अपने फ़ाक़े पर लोहे की चादरें बिछाता है उस लड़की को भूल जाना चाहिए जो वक़्त को दवाओं की शीशों में बंद करती है हमें भूल जाना चाहिए उस मलबे से जिस का नाम दिल है किसी को ज़िंदा निकाला जा सकता है हमें कुछ लफ़्ज़ों को बिल्कुल भूल जाना चाहिए मसलन बनी-नौ-ए-इंसान