जहाँ में ग़म भी है रौशन-तरीं सितारों में दिखाता राह है ज़ुल्मत के ख़ारज़ारों में नहीं सुरूद में चंग-ओ-रबाब में भी नहीं वो एक लय कि है टूटे दिलों के तारों में ख़िज़ाँ की शौकत-ओ-अज़्मत है उन पे सब ज़ाहिर जो ढूँडते उसे फिरते रहे बहारों में ख़ुशी से हुस्न निखरता है ज़ाहिरी लेकिन जमील रूहों को पाओगे ग़म के मारों में बग़ैर दर्द नहीं है कभी ज़ुहूर-ए-हयात जिगर का ख़ून उभरता है शाहकारों में मकीं हरम के मुसीबत को उन की क्या जानें जो ख़ाक छानते हैं अजनबी दयारों में पसंद आया जो टूटे दिलों का इज़्ज़-ओ-नियाज़ तो बस गया है ख़ुदा भी गुनहगारों में कभी तो देखते तुम आ के ग़म नसीबों को हसीन दाग़ है सीने के लाला-ज़ारों में